Author
Dr Neelam Verma is also a author. She composes both, in Hindi and English. She writes in several formats, like Verse, Free Verse, Haiku and Ghazal.
She was awarded Kavita Vidushi by Kalptaru for her bilingual poetic adaptation of Bhagavad Gita as 'Uttishtha Bharata'.
Neelam- Poetry and Beyond
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प्रथम किरण
बूँद बूँद पर नर्तन करती
आनंदित जग जीवन करती
प्रथम किरण उतरी नभ से
मन दर्पण ने पूछा उससे -
'कहो कहाँ से आती हो
धीरे धीरे छमछम करती
अंतराल में सरगम भरती
मन्द मन्द मुस्काती हो
किसको कहो जगाती हो???
किसके हित लाई हो बोलो
ज्योति कलश उपहार नवल
क्यूँ नभ से धरती तक रचतीं
रंगों का अभिसार सजल
किसके लिए सजाती हो
नव-रस-स्वर मनुहार चपल
कौन तुम्हारा अभिलाषी है
जिसकी हो तुम आस सबल ?
कहाँ तुम्हारा आदि-बिन्दु वह
जिसकी ही तुम ज्वाल प्रबल
कौन कहो वह बैरागी है
जिसके तप का हो तुम फल ?
क्यूँ पग पग छलकाती हो तुम
स्वर्ण कणों की यह गगरी
किसे ढूँढती गहन तिमिर में
भटक रही नगरी नगरी ?
काले सायों का पहरा है
कहीं तुम्हें ना जाए निगल
भय का अंधकूप गहरा है
देखो कहीं ना जाओ फिसल
भ्रमित दिशाएँ पूछ रही है
यहाँ कहाँ तुम आईं निकल
अंधियारा पथ , दीप ना बाती
चाल चलो तुम संभल-संभल ! '
मृदुहास धर बोली किरण,
'कब डिगे मेरे चरण
सत्य की मैं सुरभि हूँ,
शिव शक्ति की मैं परिधि हूँ
करने चली सुन्दर सृजन
खोलो,
खोलो तनिक अंतःकरण !
तुमको सुभग मैं ढूँढती
बन जाओ मेरे मीत
नव आस्था विश्वास के
तुमको सुनाऊँ गीत !'
: नीलम वर्मा
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जनमानस में राम
सूर्य सगर्व निरखता,
सरयु-साकेत समन्त ,
वन्दन से वंदनवार तक,
रामबाण अरिहन्त ।
नित्य प्रति हो सुखकारी
श्रीरामकथा का श्रवण,
हरें सकल हिय की व्यथा
श्रीजानकी श्रीचरण ।
शेषनाग अवतार रूप
सद्गुण शुभ लक्षण ,
तत्पर प्राण समर्पण को
रामानुज लक्ष्मण ।
राम दिखे या दिखे भरत
दो रूप ये एक समान
राजस्व नियंता शत्रुघ्न
संरक्षक सुमित सुजान
अवधपुरी में अनुकंपित
श्रीराम नाम का मान ,
जनमानस में अनुरंजित
करुणामय का ध्यान ।
दृष्टि कुपित-सृष्टि प्रलय
भृकुटिमात्र संकेत
वरद हस्त शुद्धि करे
प्रबुद्ध बुद्धि संचेत
चरणामृत से ही अभय
अवनितल और दिगंत
शीष नवाए परमप्रिय
हरि सेवक हनुमंत ।
: नीलम वर्मा
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कविता यदि केवल कविता होती
कविता यदि केवल कविता होती,
वर्षा की बूंद क्या बनती मोती ?
शब्दों की गहराई क्या ,
सागर से गहरी होती ?
कविता यदि केवल कविता होती !
इक पंछी की विरह वेदना मानव मन को दुखी ना करती
व्याकुल यक्ष की भाव लेखिनी मेघदूत में व्यथा ना भरती !
सूरदास को जग देखे बिन, माखन लीला कैसे दिखती ?
कहो कबीरा तुम्हरी चदरिया झीनी झीनी कैसे बनती ?
जयदेव के गीतों में कैसे, गोविंद संग राधिका झलकती ?
तुलसी की फुल्लवाटिका कैसे, नयनों का माधुर्य निरखती ?
सिय-बिन राम हृदय की पीड़ा ,रामकाव्य को सजल ना करती !
मीरा के इकतारे से, बह बह कर अश्रुधार ना झरती !
कैसे रासो के एक छंद से, शत्रु हृदय के पार उतरती ?
कैसे चेतक की टापों में, बन कर हवा वो उड़ती फिरती ?
बुन्देलेहरबोलों की रानी मर्दानी कैसे लड़ती ?
स्वतंत्रता की बलिवेदी पर चाह फूल की कैसे चढ़ती ?
वीणावादिनी नवल कंठ से नव स्वर कैसे झंकृत करती ?
भूलोक का सोया गौरव कैसे भारत-भारती जागृत करती?
कैसे मनु को हिमशिखरों में 'नर्तित नटेश' की आकृति दिखती ?
मेरे मधुर मधुर दीपक की लौ कैसे युग- युग जलती ?
दो आँखों की गहन गुफा के अंधकार को कैसे सहती ?
छिपछिप अश्रु बहाने वालों में फिर जीवित कैसे रहती ?
रश्मिरथी के प्रश्न युग मस्तक पर अंकित केसे करती ?
अग्निदेश से आनेवालों को अभिनंदित कैसे करती ?
अंतरतम से अंतर्मन कैसे विकसित नंदित करती,
द्रुमदल सुंदर शोभित करती, मातृभूमि वंदित करती !
कविता यदि केवल कविता होती ,
वर्षा की बूंद ना बनती मोती !
शब्दों की गहराई ना फिर
सागर से गहरी होती !
कविता यदि केवल कविता होती !
: नीलम वर्मा
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प्रिय कहो कौनसा गीत सुनाऊँ
प्रिय कहो कौनसा गीत सुनाऊँ ?
धरती में रोपूँ कुछ छंद,
या सागर से कुछ बीन के लाऊँ?
प्रिय कहो कौनसा गीत सुनाऊँ ?
क्या सावन की चाह बनूँ ,
प्यासे पपिहे संग पी पी गाऊँ ?
क्या मयूर बन घुंघरू बांधू ,
बरखा में पंखों को थिरकाऊँ ?
क्या बसंत की कोयल से,
पंचम सुर में कुछ सीख के आऊँ ?
बनूँ चकोरी, जगूँ रात भर,
चंद्रवदन की लगन लगाऊँ ?
क्या जुगनू बन अंधायारे में ,
अपने तन की ज्योति रमाऊँ ?
क्या श्वेत हंसिनी को समझा कर,
मधुर नेह पाती भिजवाऊँ ?
प्रिय कहो कौनसा गीत सुनाऊँ ?
क्या सूर्य ज्वाल की कंठमाल धर,
अग्नि पंख खोलूं , उड़ जाऊँ ?
नक्षत्रों की दीपशिखा से,
शब्दों के भेद पूछ कर आऊँ ?
पल, माह, वर्ष, युग सब मापूँ,
तुम कह दो, क्या ले कर आऊँ !
तुम यहीं झील तट पर रुकना,
मैं भस्मसात जब लौट के आऊँ !
इसमें जलराशि शेष रहे कुछ ,
जिससे अपनी प्यास बुझाऊँ !
फिर उतर शाँत शीतल लहरों में ,
अपने प्राण नवल कर पाऊँ !
प्रिय कहो कौनसा गीत सुनाऊँ ?
: नीलम वर्मा
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आदियोगी
रीत गई है सृष्टि ,
खो गए हैं सभी शब्द !
बचे हैं बस
दो ही बाकी,
दोनों निगूढ़ ,
दोनों एकाकी !!!
एक है मेरे पास,
एक दे दो तुम !
संभवतः सुदूर कोहरे में झलकता क्षितिज
आ जाए निकट
कोई अज्ञेय रहस्य
हो जाए प्रकट !
आदियोगी की छवि निराकार
हो जाए स्वयमेव ही साकार
अर्धनारीश्वर को मिल जाए
अपनी अलक्ष अर्ध प्रतिमूर्ति
या भोर के आधे उभरे सूर्य को,
अपनी अदृष्य
अर्ध-आकृति !
एक दूसरे से अनिभिज्ञ
एक दूसरे को खोजते
एक दूसरे का लक्ष्य
केवल दो ही तो शब्द हैं !
एक है मेरे पास
एक दे दो तुम .....
सृष्टि जो रीत गई थी,
भर जाएगी फिर से
उमंग से, तरंग से
राग से, रंग से !
सृष्टि सृजन
दो ही शब्दों का तो खेल है
दो ही शब्दों का तो मेल है !
एक है मेरे पास
एक दे दो तुम ....
: नीलम वर्मा
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कौन ये चमकता है, झील जैसी आँखों में
नूर सा झलकता है, झील जैसी आँखों में
जब हवाएं हंस हंस कर , कलियों को जगाती है
अरमाँ इक महकता है, झील जैसी आँखों में
जब हुस्न कभी रुख से , चिलमनें उठाता है
आईना सा दिखता है, झील जैसी आँखों में
ले के चल मुझे माँझी, गहरा है जहाँ पानी
दिल जहाँ फिसलता है , झील जैसी आँखों में
तारे झिलमिला कर जब महफिलें सजाते हैं
चाँद इक संवरता है, झील जैसी आँखों में
ढूँढा है फ़लक ने भी , डूब कर समन्दर में
आँसु जो उमड़ता है , झील जैसी आँखों में
मुझमें अक्स है उसका, या वो अक्स है मेरा
'नीलम' वो जो छुपता है , झील जैसी आँखों में
: नीलम वर्मा
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फिर मुझे बुलाते हैं गोआ के हसीं जंगल
याद कुछ दिलाते हैं गोआ के हसीं जंगल
रंग अब दिखा देगा अपने इश्क का आलम
वादे ख़ुद निभाते हैं गोआ के हसीं जंगल
इक भटकती कश्ती जब ढूँढती है साहिल को
हाथ को हिलाते हैं गोआ के हसीं जंगल
दूर देश से आएँ जब हवाएँ सावन की
झूमते हैं गाते हैं गोआ के हसीं जंगल
कुछ परिंदे परदेसी डालते हैं डेरा जब
बाहों में झुलाते हैं गोआ के हसीं जंगल
शाम की सुनहरी ज़ुल्फ़ डूबी जब भी सागर में
कैसे मुस्कुराते हैं गोआ के हसीं जंगल
चांद जाम 'नीलम' ये चाँदनी पे जब छलके
सो नहीं ये पाते हैं गोआ के हसीं जंगल
: नीलम वर्मा
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महफिल-ए-तरब चाँदनी
है सुहानी अब चाँदनी
बादलों की ओट से कभी
ढाती है ग़ज़ब चाँदनी
राज़ पैरहन में छुपे
जादू है अजब चाँदनी
चूमती है इत्र लूटने
मोगरा के लब चाँदनी
बज्म-ए-शेर में आपके
आई बा-अदब चाँदनी
धीरे से जगाने लगी
इश्क़ की तलब चाँदनी
ग़मज़दा सितारे हो गये
भीगती है जब चाँदनी
ख्वाब-ए-वस्ल के साथ में
जागी सारी शब चाँदनी
'नीलम' ये अदाएँ हुस्न की
जानती है सब चाँदनी
: नीलम वर्मा
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बाँसुरी बजाई है आस्माँ के तारों ने
धुन नई सुनाई है आस्माँ के तारों ने
जब कली चटकने लगी जब हवा बहकने लगी
खुश्बू सी चुराई है आस्माँ के तारों ने
वो किरन रूमानी सी, तश्नगी वो शबनम सी
आँखों से पिलाई है आस्माँ के तारों ने
ये ज़मीं नहीं तन्हा हम-सफ़र भी है इसकाण
ये खबर उड़ाई है आस्माँ के तारों ने
कहकशाँ की लहरों में तैरता है दिल शब भर
कश्ती यूँ झुलाई है आस्माँ के तारों ने
जिंदगी भटकती हुई आस्तां पे पहुंची अब
राह वो सुझाई है आस्माँ के तारों ने
जगमगाया 'नीलम' जब चांद चाँदनी संवरी
रात क्या सजाई है आस्माँ के तारों ने
: नीलम वर्मा
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तारों के हैं संग हंसतीं ये कलियाँ भी रातों में
शबनम से गले मिलतीं ये कलियाँ भी रातों में
जब शाम के साए में ये इश्क़ तरसता है
तो राहों को हैं तकतीं ये कलियाँ भी रातों में
जब उसने सदाएं दीं इक हुस्न को फ़ुरक़त में
चुपके से हैं सुनतीं ये, कलियाँ भी रातों में
रुखसार के सदके में उस नूर-ए-तबस्सुम के
काँटों से नहीं डरतीं ये कलियाँ भी रातों में
जब जिक्र किया उसका शम्आ ने हवाओं से
अश्आर में हैं सजतीं ये कलियाँ भी रातों में
दामन जो फकीरों ने फैलाया कहीं अपना
ख़ुश्बुओं से हैं भरतीं ये कलियाँ भी रातों में
उस चाँद की 'नीलम' जब किरनें सी छनकती हैं
सोतीं हैं न हैं जगतीं ये कलियाँ भी रातों में
: नीलम वर्मा
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*राम-वैदेही* 🌹🌹🌹🌹
1. पुष्पवाटिका
'अंजुली में पुष्प भरे नयनों में प्रिय रूप'
2 . स्वयंवर
'राघवेन्द्र घन सघन मुग्ध जानकी चंचला '
3. वनगमन
'गंगा हिलोरित करे वंदन धरती सुता'
4. पंचवटी
'वन्या- वेश पधारी लक्ष्मी विस्मित पंचवटी'
5. दंडकारण्य
'सियावर रामचाप टंकार दंडक अभय'
6. प्रपंच
'स्वर्णिम मृग मारीच से सम्मोहित महामाया'
7. सीता - हरण
'वर ना सका जिस सीता को हर लाया लंकेश'
8. संकेत
'कानन में बीने कपीश आभूषण सिय चिन्ह'
9. पवनपुत्र
'देख वनवासी प्रभु नतमस्तक हनुमान '
10. अशोक- वाटिका
'वैदेही की शोक अग्नि में तपता वृक्ष अशोक'
11. विजया
'श्रद्धा सिय की राम में विजय प्राप्ति श्रीमंत्र'
12. दीपोत्सव
'भूमि असुर भय मुक्त करे दिव्य दीपोत्सव'
-नीलम वर्मा -
गहरे भाव
बलखाती सरिता
नन्ही कविता
*
गरिमामयी
हिन्दी हो विश्वप्रिया
जयविजया
*
पुस्तक एक
अनदेखी दुनिया
खोल के देख
*
मुझे बुलाती
सहमी सी गौरैया
हाइकु गाती
*
नभ अपार
शीतल जलधार
हवा हिंडोला
*
सूर्य तेजस्वी
केसरिया पहाड़
सुनो दहाड़
*
शौर्य अक्षय
कारगिल शिखर
लक्ष्य विजय
*
हौसला देखो
जरा से बादल का
सूरज ढका
*
साँवरी घटा
डाले गलबहियाँ
पर्वत सैयाँ
*
मुँह अंधेरे
भरती उजियारे
पनिहारन
*
शाम अजूबा
आस्माँ फिसल कर
झील में डूबा
*
तरल भ्रान्ति
नदिया में बहती
चंचल शान्ति
*
सोया ललना
झुलाए माँ पलना
करो ना शोर
*
नर्गिसी आँखें
बरसों इंतजार
ज़रा सा प्यार
*
छूटी जो डोर
उड़ चली पतंग
तेरी ही ओर
*
मीत की प्रीत
मन से ऐसी जुड़ी
नींद ले उड़ी
*
खजुराहो में
पत्थर हुआ वक्त
मूर्ति आसक्त
*
बसंती संध्या
सुरभित गोधूली
मैं सब भूली
*
पलाश पुष्प
छिपाए अग्नि-श्वास
कंदर्प वास
*
काश वो कान्हा
आम्र मंजरी तले
मिलता गले
**
धीर समीर
धीर समीर
हरि कहाँ बिराजे
राधा अधीर
*
यमुना तीर
हरि बिन सावन
बढ़ाए पीर
*
घन गंभीर
हरि बिन उमड़े
नैनन नीर
शुभयामिनी
सांध्य सुन्दरि
करती मनुहार
सजाए द्वार
*
नीरव निशा
राधा बैठी उदास
प्रिय प्रवास
*
राग यमन
गुनगुनाते सितारे
श्याम पधारे
*
चाँदनी रात
उजली जलधार
नौका विहार
*
स्वप्न प्रवाह
लहरें उन्मादिनी
शुभयामिनी
'पंचतत्व'
दिव्य दर्पण
पंचतत्व नर्तन
प्रकृति लीन
'पृथ्वी'
पृथ्वी की गंध
जीवन अनुबंध
प्राण प्रवाह
*
'जल'
जल सिंचित
दृष्य प्रतिबिम्बित
नित्य नवल
*
'अग्नि'
अग्नि ओजस्वी
प्रज्वलित तपस्वी
यश का स्रोत
*
'वायु'
वायु निर्बाध
मधुरस अगाध
श्वास निश्वास
*
'आकाश'
नक्षत्र ज्ञाता
मुग्ध आकाश गाता
नीलाभ गान
*
'सृष्टि'
सत्य् या भ्रम
लास्य-तांडव क्रम
शिव संकल्प
'आकाश'
संध्या के गीत
करते आमंत्रित
आकाश-दीप
*
सिन्धु शयन
तैर रहा आकाश
नील नयन
*
चंद्रिका हास
मधुशाला आकाश
स्वप्न निवास
*
निद्रा गहरी
तिमिरबद्ध आकाश
निशा प्रहरी
*
प्राची प्रांगण
करती अभिषेक
नित्य किरण
*
स्वर्णिम रज
पुलकित प्रत्यूषा
खिले जलज
*
भैरव तान
आकाश पुरोहित
विहग गान
*
स्वागत नृत्य
आनंदित आकाश
हिरण्यादित्य
: नीलम वर्मा
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Monostitch Haiku
*
साँझ ढले जागी रात आँखें मलते मलते
*
झील में डूबीं अस्तमित रश्मियाँ
*
'रातरानी और मैं - घुप्प अंधेरे में लुकाछिपी'
*
सुनसान रात समेटे आँसु सर्द हवा के
*
हरसिंगार खिला कविता में झरता शरद्
*
सूर्य किरण पकड़े कैसे मृगी स्वर्ण नयनी
*
झर जाते फूल पत्ते मेघ आँसू आते नये
*
हर सुबह मिट्टी में मिलते स्वर्ण कण
*
'मिला खोया मोती मुझे तूफाँ में डूबने के बाद'
: नीलम वर्मा
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Whistling Breeze
i can hear a whistling breeze,
perhaps someone walks through the rustling leaves.
far away
in the night sky,
a cloud forlon
is ruffling its feathers ,
all alone .
however long may be the night,
i have no dilemma
i have no fright.
i hold my lantern out of the window.
from the sparks of my heart
i keep it aglow;
promise me dear
you won't let the music stop.
on the wings of time,
forever it will flow .......
: Neelam Verma
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Rocks and Flowers
tiny florets
open their soft petals .
fountains of aroma
bursting from their smile
fill the void between the cliffs and peaks of dry rocky mountains.
The barren rocks wait for ages
for these colourful blooms
to cover them !!!!
they tendely hold the fresh blossoms in their undulating arms .
without hurting their fragile fragrance
nurture them with utmost care !
like lovers united at last
the rocks and the flowers
sing for a few moments together.
overlap their octaves
create a symphony of love.
their love-song resonates in the endless rapture of nature and buries itself in its bosom,
to rise
again
and again .....
: Neelam Verma
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Beauty and Love
beauty is kove
love is beauty-
free from each other
yet bound forever.
in the whirlpool of creation
they rise together.
transfixed in a spell
they reflect their glow on each other,
revolve around each other
and dance in steps so random
some times tango
some times tandem
sometimes foxtrot
sometimes bolero
sometimes they stealthily tiptoe.
hand in hand
they gaze at each other
with a smile so bright
their flashes of joyful laughter
fill the dusky meadows
with tinkling of twilight
their eyes brimming with rapture
decorate the horizons
with colours of delight.
with their soft slender fingers
they tenderly pick the shining stars at night
weave them into garlands of gems jewels and pearls
set them across the galaxies
swirling them into twirls !
If you just stay still for a moment
you can even hear
the sweet sonnets they sing
and make the space so startling.
alas,
neither beauty nor love
can exist without the other
if one is gone,
so is the other ....
beauty is love
love Is beauty .
free from each other
yet bound
forever, forever, forever......
: Neelam Verma
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Lake Temple
My dear painter,
I look at the painting once again.
The painting you created with so much love
so much pain !
My eager fingers quiver over the canvas
I try to feel the endless lines of the lake
the curves
the contours
I try to fathom the depth of colours
I know it's just an illusion of myriad hues
Yet I can feel soft breeze caress the drops of rain
I touch the painting
once again !
I can feel the strokes that bring the shadows
out of light
I can feel the figures that enjoy
the dark delight !
My dear painter,
I want to feel your sorrow
that flows along the somber colours of the lake
but it evades my finger tips,
just like the dew drops that stay away from my parched lips !
Exhausted, I step back
I gaze at the shapes
I can see them merge into one another
go farther and farther away
and then emerge from an undefined horizon
struggle to find their way !
Just like me
everything looks lost
A blazing fire
buried deep in frost !
I shiver in forlon silence
I quietly try not to forget your name
I look at the painting,
once again !
I have seen it all !
The trees lining the dusky twilight
or is it day break
I am never quite sure;
the water is always ink blue
calm and pure !
There is a boat coming out of a dark moonless night
or is it going into one
who can say ?
A boatman rows the boat
and it seems
he knows his way !
This is when I see something I have missed till now
I don't know how ;
the old painting you gifted me
reveals something new -
the boatman who tirelessly rows the boat
looks just like you !
From somewhere far away have you come so near ?
Looking for someone ?
Is it me ?
Then why don't you call my name ....
O Dear?
I have come running all the way,
I am almost at the Temple Gate,
But you don't wait !
Alas, cruel fate ....
My hands are full of crimson flowers I brought for you
but by the time I reach the lake
you are gone ;
I am once again left behind ,
standing all alone !
At the Lake Temple
I now wait in vain
yet I keep looking at the painting
again and again ....
: Neelam Verma
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1.
Himalayas
Himalayas chant
Nightfall swings her magic-wand
Ganga falls asleep
2.
Monsoon
Monsoon- a mad rush
Flashing and thundering clouds
Embrace the sky.
3.
Shadows
Dusk teases hilltops
Forest greens gulp last sunrays
Shadows wait for stars
4.
Peach Flowers
Blue sky smiles above
Pink peach flowers bloom below
Birds hum a prayer
5.
Red Peony
Sun kissed peony
Opens her crimson red lips
A fairy escapes
6.
Dreams
Colours don't ever cry
Winter snow melts in warm hearts
Our dreams never die
7.
Home
Breathless stars struggle
With restless red and blue shifts
Scramble to find their home
: Neelam Verma
Everything in the universe is something - Nothing is cypher.....
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Monostich Haiku
1.
Twilight
Moon music stars - night jasmine sips a dew drop .
2.
Skydive
Rooftop gardens wait to skydive.
3.
Spring Breeze
Passionate sun kisses the earth- crazy spring breeze swirls and trips.
4.
Mussouri
Sunset clouds slip down foggy slopes - Mussouri yawns.
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Silk Route
Worms dig black holes
Crawl silky smooth spider web -
Addicted star hunters